फिर भी हम तो सभ्य समाज के बासिंदे होने का सीना ठोककर दावा करते ही हैं। फिर भी हम तो सभ्य समाज के बासिंदे होने का सीना ठोककर दावा करते ही हैं।
सब के पास घर और काम नहीं होता,ऐसे लोगों को समाज अपना मानता भी तो नहीं सब के पास घर और काम नहीं होता,ऐसे लोगों को समाज अपना मानता भी तो नहीं
मगर यह सचमुच विकास है या उनकी आँखों का भ्रम। मगर यह सचमुच विकास है या उनकी आँखों का भ्रम।
वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।
मैं कहानियां लिखता हूँ उन बातों पर उन चीजों पर जो मुझे परेशान करती है , सच को शब्दों के पंख... मैं कहानियां लिखता हूँ उन बातों पर उन चीजों पर जो मुझे परेशान करती है , सच...
न जमीन, न कोई जायदाद, न धन-दौलत कुछ भी तो नहीं था हां बस था तो एक कच्ची मिट्टी का ये घर जिसकी छतें ब... न जमीन, न कोई जायदाद, न धन-दौलत कुछ भी तो नहीं था हां बस था तो एक कच्ची मिट्टी क...